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वो दौर ( lovely poem )

    वो दौर  

वो दौर  था एक ,
जब मैं और मेरी आशिकी ,
दोनों सच्चे थे ,
तलबगार थे तेरे ,
मगर इतने भी नहीं ,
की खैरातो से दिन कटे  |

कुछ खुबसूरत कविताएँ 

वो दौर

आगे बड़कर जब भी लौटा हू,
उसने कहा तुम बदल गये,
पर जनाब लोग उही नहीं बदलते  ||

वो दौर

हु मैं सफ़र में ,
और सफ़र की बाते सबको ,
बताना चाहता हू ,
पर कैसे कहू,,
दुविधा में हु ,
सूखे होटों से अल्फाज भी नहीं निकलते |


अब नहीं कहता मै किसी से ,
की मेरी कोई मोहब्बत है ,
क्योकि इश्क,प्यार,ये सब ,
बस एक शिकायत है ,
अफ़सोस शिकायतो से ,
 मसले नहीं सुलझते |

वो दौर



वो दौर ( lovely poem ) वो दौर  ( lovely poem ) Reviewed by Triveni Prasad on मई 19, 2019 Rating: 5

4 टिप्‍पणियां:

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